क्या जाने कितने लोग?

Saturday, August 22, 2009
बेगुनाही की सज़ा पाते हैं

न जाने कितने लोग ?

रोते और चिल्लाते हैं

न जाने कितने लोग ?

बेसहारा हो जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

सिसकते रह जाते हैं

न जाने कितने लोग?

टुकडों में बिखर जाते हैं


न जाने कितने लोग ?

अपाहिज हो जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

जल कर खाक हो जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

पहचान में भी न आते हैं

न जाने कितने लोग ?

पानी में बह जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

पुलों के नीचे दब जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

भूख से मर जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

मासूमों का खून बहाते है

न जाने कितने लोग ?

सच के मुखौटे में झूठ छुपाते हैं

न जाने कितने लोग?

अपनी जेब भरे जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

झूठी हमदर्दी जताते हैं

न जाने कितने लोग ?

इन्साफ की आवाज़ उठाते हैं

न जाने कितने लोग ?

आवाज़ को अनसुना कर जाते हैं

न जाने कितने लोग ?

बस डर में ज़िन्दगी बिताते हैं

न जाने कितने लोग ?

फ़िर भी समझ न पाते हैं

न जाने कितने लोग ?

अपना कर्तव्य निभाते हैं

क्या जाने कितने लोग ?

2 comments:

  1. Nice poem... :)

    keep Blogging.. :)

    Cheers!!

  1. anushree said...:

    #amit: thanx alot

    cheers to u too!!