आत्मा की गहराई में यदि झांकें
तो हर अस्तित्व में एक सौरभ है
जैसे कस्तूरी छिपी हिरन में है
जैसे महक हर फूल का गौरव है
यूँ ही एक सौरभ बसा है मुझमें
जिसकी खुशबू फैली हर दिशा में है
जिसकी सुगंध,
ओस के बूँद सी पावन है
जिसके आने से ,
पतझड़ में भी दिखता सावन है
जो दोस्त है मेरा ,हमराज़ भी
जो सांये की तरह मेरे साथ भी
दिए बाती सा साथ हमारा
जिससे मिलता है तूफ़ान में भी किनारा
नाज़ है मुझे उस पर
जो शक्ति है मेरी सच्चाई भी
जो विशवास है मेरा और अच्छाई भी
creative again, innovative again n again B E A Utiful...poem.
Good Job'
waise ye saurabh kaun hai!! he he.