woh

Sunday, March 7, 2010
बड़ी भोली थी वो
जो यूँ प्यार कर बैठी
हज़ारों सपने आँखों में लिए
यूँ इकरार कर बैठी
अरमानों को तस्वीर देने
तकदीर से टकरार कर बैठी
बड़ी भोली थी वो
जो यूँ प्यार कर बैठी
छल-दिखावे के बादल जब छंटते देखे
पगली, उनसे भी इनकार कर बैठी
आंसुओं को दामन में छुपाये 
मुस्कराहट की बौछार कर बैठी 
क्या पाया उसने ?यूँ खो कर सब कुछ 
क्यूँ सब कुछ बर्बाद कर बैठी 
बड़ी भोली थी वो 
जो प्यार कह कर 
ज़िन्दगी से खिलवाड़ कर बैठी